बुधवार, 31 मार्च 2021

स्यूंसाल: 6 साल में  नहीं बन पायी शहीदों के गांव में 2 किमी सड़क


स्यूंसाल ग्रामवासियों ने किया विधायक का घेराव


ग्रामीणों का कहना है कि 5 साल में 3 मुख्यमंत्री, 2 सांसद और 2 विधायक गए फिर भी उन्हें 2 किमी रोड नहीं मिल पायी



चौथान समाचार, बुधवार, 31 मार्च 2021


Protest against local MLA Dhan Singh Rawat, March 31, 2021

वर्षों से सड़क सुविधा से वंचित स्यूंसाल के ग्रामीणों का सब्र का बांध आज उस वक्त टूट गया जब स्थानीय विधायक धन सिंह रावत का क्षेत्र में दौरा हुआ और उन्होंने विधायक का रोड़ पर ही घेराव कर कड़ा रोष व्यक्त किया। यह घटना लगभग शाम 3:30 बजे हुई जिसमें बड़ी संख्या में गांव की महिलाओं और पुरुषों ने विधायक के काफिले को सरकारी अस्पताल के पास रोक विरोध प्रदर्शन जताया। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले पांच सालों में उनके गांव में दो किलोमीटर की सड़क भी नहीं बन पायी है जिस कारण वे आज भी बड़ी तकलीफों का सामना कर रहे हैं।  

Rs. 35 spent on half built road under CM village road scheme. 


गौरतलब है कि स्यूंसाल गांव की आबादी 250 से ज्यादा है। गांव से देश सेवा में  दो जवान भी शहीद हुए हैं। ग्रामीण पिछले कई वर्षों से सड़क सुविधा की मांग कर रहे हैं। फिर भी उनका गांव मोटर मार्ग से नहीं जुड़ पाया है। जानकारी के मुताबिक वर्ष 2016 में  35 लाख की लागत से मेरा गांव मेरी सड़क योजना के तहत गांव के लिए दो किलोमीटर लम्बा कंक्रीट रोड स्वीकृत हुआ था। जिसका तीन सालों में केवल एक किमी हिस्सा ही बन पाया। ग्रामीण बताते हैं कि इस रोड पर एक भी दिन गाड़ी नहीं चली और 35 लाख खत्म हो गए। जो हिस्सा बना है उस पर पुलिया टूट चुकी है , जगह जगह गड्ढे और धसाव हो चूका है और वर्तमान में यह रोड पैदल चलने लायक भी नहीं बचा है।  


Damaged culvert of old road even when it was under construction. 


जब गांववालों ने पुरजोर तरीके से सड़क की मांग उठायी तो दो साल पहले उन्हें बताया गया कि मुख्यमंत्री सड़क योजना से बनी रोड कामयाब नहीं है और उनके गांव के लिए पीडब्लूडी के द्वारा नया मोटर मार्ग बनाया जायेगा। इस मार्ग के लिए भी कई बार सर्वेक्षण और कागजी कार्यवाही हो चुकी है पर धरातल पर कोई काम नहीं हुआ है। पिछले छः महीन से विभाग उन्हें टेंडर प्रक्रिया का हवाला दे, मार्च 2021 से रोड निर्माण काम चालू करने का आश्वासन दे रहा है परन्तु अब जब मार्च का महीना भी बीत गया तो ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे गया है। इसी कारण उन्होंने विधायक आगमन की सूचना पर उनके घेराव का फैसला किया।  



Thick invasive plants making incomplete road unusable even for walking.


लोगों के भारी आक्रोश के चलते विधायक धन सिंह रावत ने 2 महीने के अंदर गांव में मोटर मार्ग शुरू करने का आश्वासन दिया है। काफी गहमागहमी के बाद ग्रामीणों ने विधायक का रास्ता छोड़ा। सरकार पर लोगों की बुनियादी जरूरतों की अनदेखी करने का आरोप लगते हुए ग्रामीणों ने कहाँ कि यदि अब भी सरकार नहीं चेती तो उनका पूरा बहिष्कार किया जायेगा। ग्रामीण ने अपनी मांग लिखित तौर भी विधायक प्रतिनिधि तक पहुंचाई है और पुराने रोड में हुए भ्रष्टाचार की जाँच कर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करने को कहा है।  


PWD staff surveying new road, Nov. 2020 pic.

गौरतलब है कि चौथान क्षेत्र में पहली बार विधायक को जनता कि नाराजगी का सामना करना पड़ा है। वास्तव में सड़क सुविधा के अभाव में ग्रामीणों की दयनीय स्थिति है। गांव से मुख्य मोटर मार्ग लगभग 2 किलोमीटर दूर है। आपात स्थिति में मरीजों को अस्पताल पहुंचाने अथवा बाजार से भारी भरकम सामान गांव ले जाने में ग्रामीणों को बहुत विशेषकर महिलाओं को बहुत अधिक कष्ट का सामना करना पड़ता है।




इसलिए विधायक का विरोध करने में गांव की महिला प्रधान दीपा बिष्ट समेत रैणी देवी, रानी देवी, तुलसी देवी, कमला देवी, ठगुली देवी, सीता देवी, बसंती देवी, पार्वती देवी, भागुली देवीकई महिलाएं एकजुट होकर आगे आई। साथ में मौके पर गांव के हरक सिंह, इंदर सिंह बेलवाल, श्याम सिंह बेलवाल, शोभन सिंह बिष्ट, आनंद सिंह बिष्ट, गोविंद सिंह बिष्ट, आनंद सिंह, अमर सिंह भंडारी, नंदन सिंह भंडारी, धरम सिंह भंडारी, शंभू प्रसाद, धन सिंह बिष्ट, पूर्व सरपंच गोपाल दत्त, दिनेश सिंह, विनोद सिंह, दौलत सिंह नेगी, वीरेंद्र सिंह बिष्ट भी मौजूद रहे।

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

दिल्ली दंगों में दिवंगत देवभूमि के दिलबर नेगी का निगम बोध पर दाह संस्कार





चौथान समाचार 29 फरवरी 2020 

ओ यूँ ना लम्हा लम्हा मेरी याद में
होके तन्हा तन्हा मेरे बाद में
नैना अश्क़ ना हो
माना कल से होंगे हम दूर
नैना अश्क़ ना हो
नैना अश्क़ ना हो    

28 फरवरी की शाम को निगम बोध घाट, दिल्ली पर बड़ा गमगीन माहौल था, जब उत्तराखंड समाज द्वारा सामूहिक तौर पर दिलबर नेगी का अंतिम संस्कार किया गया।  दिलबर नेगी 24 फरवरी की रात को पूर्वी दिल्ली में भड़के हिसंक दंगों में जान गँवा बैठे।  

लगभग 19 वर्षीय दिलबर नेगी पौड़ी गढ़वाल जिले के थैलीसैंण ब्लॉक, तहसील चकिसैंण के अंतर्गत आने वाले रोखड़ा गांव के निवासी थे। दिलबर के पिता का नाम गोविन्द सिंह नेगी है। दिलबर के अलावा परिवार में दो भाई एक बड़ा और एक छोटा और तीन बहनें हैं जिनमें से दो बहनों की शादी हो गयी है।

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और पिता  जी का स्वास्थ्य भी ख़राब रहता है। इसी के चलते बड़ा भाई देवेंद्र सिंह नेगी बहुत पहले से ही गाजियाबाद में निजी क्षेत्र में काम करने लगा। लगभग सात माह पूर्व दिलबर और उसका छोटा भाई भी बाहरवीं की परीक्षा उपरांत रोजी रोटी कमाने दिल्ली आ गए। 

यहाँ दिलबर नेगी करावल नगर में शिव विहार तिराहा के पास अनिल स्वीट शॉप में काम कर रहा था। दिलबर मालिक की ही पास में बनाई बिल्डिंग में रहता था।  24 फरवरी को शाम तीन बजे के बाद क्षेत्र में हिसंक दंगे भड़क गए। जानकारी के मुताबिक जिस बिल्डिंग में दिलबर रहता था उसमें दंगाइयों ने आग लगा दी जिसमें दिलबर चल बसा।  

क्षेत्र में हालत  इतने तनावपूर्ण थे कि दो दिनों तक दिलबर की कोई खोज खबर नहीं मिली।  26 फरवरी को जब मालिक पुलिस की मदद से बिल्डिंग में पहुंचा तक घटना का पता चला। उसके बाद दिलबर की लाश को गुरुतेगबहादुर अस्पताल में मोर्चरी में पहुँचाया गया। दिलबर के साथ रहने वाले  गांव के ही किसी परिचित ने परिजनों को सुचना दी। सुचना मिलते ही गांव से दिलबर के चाचा जगत सिंह नेगी और गाजियाबाद से भाई देवेंद्र और अन्य सम्बन्धी अस्पताल पहुंचे।  

जैसे जैसे दिलबर की मौत की सुचना दिल्ली में फैली यहाँ रहने वाला उत्तराखंडी समाज से जुड़े प्रबुद्धजन, समाजसेवी भी दिलबर की खोज खबर लेने अस्पताल पहुंचे। घटना से स्तबध उत्तराखंड समाज ने दिवंगत के परिजनों की अस्पताल की औपचारिकताओं से लेकर निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार में हर प्रकार की सामाजिक आर्थिक मदद की।  

परिजनों ने बताया की दिलबर हसमुख स्वाभाव का था और फौज में भर्ती होना चाहता था। परिवार पर आर्थिक बोझ ना हो इसलिए दिलबर दिल्ली में नौकरी कर अपना सपना साकार करना चाहता था। पर किसी को नहीं पता था देश की सुरक्षा का सपना पाले उत्तराखंड का ये जवान दंगों में शहीद हो जायेगा।  

जहाँ दिलबर के चले जाने से इनके परिवार को कभी ना भरपाई होने वाली क्षति पहुंची है वहीँ देवभूमि के इस जवान की मौत से उनके गांव जिले में माहौल गमगीन है। दिल्ली में रहने वाला उत्तराखंडी समाज भी निशब्द और आक्रोशित है। घटना से आहत निगम बोध घाट पर जुटे उत्तराखंड समाज के लोगों ने दिलबर के परिवार को उत्तराखंड, दिल्ली और केंद्र सरकार से न्याय एवं आर्थिक सहयोग दिलाने का संकल्प लेकर अपने एकता अखंडता और भाईचारे का परिचय दिया। साथ में तय किया की परिवार के सदस्य को को सरकारी नौकरी की मांग भी पुरजोर तौर पर उठाएगी।

वास्तव में हम दिलबर की कमी कभी पूरी नहीं कर सकते पर के परिवार को इंसाफ दिलाने में अपना एकजुट प्रयास जरूर कर सकते हैं।  परदेश में बसे उत्तराखंडी समाज के सामने यह भी चुनौती है कि फिर से हमारा निर्दोष भाई सामाजिक अपराधों, दंगों की भेंट ना चढ़े। 

दिलबर के माता पिता, भाई बहनों, गांववालों और परिजनों को हमारा नमन। इस दुःख की घडी में पूरा उत्तराखंड समाज पीड़ित परिवार के साथ है।    




Bhim 
we4earth@gmail.com

सोमवार, 8 जुलाई 2019

ताकि प्लास्टिक कचरा ना बने तालाबों के लिए खतरा

हरेला नरेला 2.0 जुलाई 8, 2019 (20वां दिवस)


नरेला में पिछले 20 दिनों से चल रहे पतौड़ी जोहड़ पुनर्जीवित अभियान के तहत युवाओं ने आज सफाई मुहिम चलाई। 2 घंटे तक चले इस मुहिम में जोहड़ के अंदर बाहर से भारी मात्रा में खतपतवार को हटाया गया। साथ में 30-40 किलो प्लास्टिक और अजैविक कचरा भी एकत्रित कर कूड़ेदान में पहुंचाया गया। दो दिन पहले भी युवाओं ने जोहड़ क्षेत्र से खतपतवार को हटाया था।
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युवाओं का यह समूह नरेला में लोगों को पेड़-पानी-पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रहा है। जून माह से ही युवाओं ने जोहड़ के चारों तरफ पौधारोपण का कार्य शुरू किया हुआ है। अब तक स्थानीय प्रजाति के 43 पौधे लगाए गए हैं। वहीं जोहड़ क्षेत्र में प्राकृतिक ढंग उगे 13 पौधों को सुरक्षित किया गया है। युवाओं का प्रयास है कि बारिश के पानी और अन्य विकल्पों के माध्यम से पतौड़ी जोहड़ को दोबारा भरा जाए ताकि भूजल स्तर में हो रही गिरावट को रोका जा सके।

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धीरे धीरे युवाओं के प्रयास में बच्चे, बुजुर्ग और स्थानीय लोग भी जुट रहे हैं और अपना योगदान दे रहे हैं। सब का मानना है कि तालाब,जल संरक्षण के परंपरागत स्रोत हैं और तालाबों का संरक्षण बहुत जरूरी है। पतौड़ी जोहड़ सफाई अभियान में भाग लेने वाले सदस्यों के नाम हैं। गौरव कुमार,अश्वनी खत्री,घनश्याम भारद्वाज,हरीश खत्री, सुन्दर, मंजीत,जगजीत उर्फ़ निया, ब्रह्मदत्त, विनोद, दिनेश, कुलदीप, सुरेंद्र, कविंद्र, श्याम, सोनू, जोगिंद्र।





भीम

रविवार, 9 सितंबर 2018

हिमालय दिवस 2018: चेता रहा है हिमालय, क्या ध्यान दे रहे हैं हम


सबको हिमालय दिवस 2018 शुभकामनाएं। आइए इस अवसर पर अपने  उत्तराखंड में जल, वन, माटी की वर्तमान स्थिति  जानने का प्रयास करें। 

सूख रही है उत्तराखंड कि नदियां:- सितम्बर 2017 में नेचुरल रिसोर्स डाटा मैनेजमेंट सिस्टम (एनआरडीएमएसा) के उद्धरण से प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कुमाऊ और गढ़वाल मंडल में प्रवाहित तमाम बड़ी नदियों की 332 सहायक नदियां सूखकर बरसाती नदियों में तब्दील को चुकी हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक नदियों की लंबाई सिकुड़ने के साथ उनका जलप्रवाह भी तेजी से घट रहा है। यदि सिमटती नदियों को पुनर्जीवन नहीं दिया गया तो भविष्य में इसके बहुत बड़े दुष्परिणाम सामने आएंगे।

रिपोर्ट आगे चेताती है कि बरसात में बेशक नदियां खतरे के निशान से भी ऊपर बहती हों लेकिन सच यही है कि उत्तराखण्ड की जीवनदायनी नदियां अंदर ही अंदर खोखली होती जा रही हैं।  विशेषज्ञ कहते हैं कि 68 प्रतिशत भूभाग को संचारित करने वाली गैर हिमानी नदियों एवं हजारों धारे, गधेरे आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं। नदियों में गाद समाती जा रही है। इसके चलते नदियों का प्रवाह निरंतर प्रभावित हो रहा है।  http://janjwar.com/post/pachas-saal-men-sookh-gayin-uttarakhand-kee-300-nadiyan-dinesh-pant (30 सितम्बर 2017)

बढ़ रहा है जल संकट:-  इससे भी ज्यादा चिंताजनक स्थिति नदियों को जिन्दा रखने वाले नौलों, झरनों और परम्परागत जल स्रोतों की है,  वे भी लगातार सूखते जा रहे हैं।  संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्य में अनुमानित 2.6 लाख परम्परगत जल स्रोतों में जल की मात्रा पचास प्रतिशत तक घट गई है। रिपोर्ट बताती है कि ये जल स्रोत पेयजल की  90 प्रतिशत आवश्यकता को पूरी करते हैं।  

इन जल स्रोतों के सूखने के पीछे अवैज्ञानिक तरीके से सडकों का निर्माण और अनियोजित शहरीकरण बताया जा रहा है जिसके लिए वनों को काटा जा रहा है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि गांवों से पलायन के पीछे जल संकट एक बड़ी वजह है और जलवायु परिवर्तन स्थानीय जल संसाधनों में जल की कमी को ओर बढ़ा देगा जिससे पलायन की समस्या में बढ़ोतरी होगी। आश्चर्य की बात है कि जल संसाधनों में समृद्ध उत्तराखंड के 13 जिलों में से 10 दो साल  (2007-09) के दौरन सूखे का सामना करना पड़ा है।
https://timesofindia.indiatimes.com/city/dehradun/uttarakhand-facing-acute-water-crisis-undp-report/articleshow/63187711.cms  (6  
मार्च 2018)

गंभीर हो रही है मिट्टी कटाव की चुनौती :- अपने जुलाई 2018 के सर्वेक्षण में नागपुर स्थित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो और दिल्ली स्थित इसके क्षेत्रीय केंद्र के शोधकर्ताओं ने पाया है कि हिमालय क्षेत्र में स्थित राज्य उत्तराखंड का 48 प्रतिशत से अधिक हिस्सा मिट्टी के कटाव से अत्यधिक प्रभावित हो रहा है, जो स्थानीय पर्यावरण, कृषि और आजीविका के लिए एक प्रमुख चुनौती बन सकता है।
http://vigyanprasar.gov.in/isw/soil_erosion_getting_serious_uttarakhand_story.html (18
जुलाई 2018)

चार धाम योजना की वजह से भूस्खलन जोन बनता जा रहा है उत्तराखंड :- डेली पायनियर की सितम्बर 2018 की रिपोर्ट के अनुसार चार धाम मार्ग सड़क योजना के कारण केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मार्गों पर पहाड़ी काटने, पेड़ काटने और मलबे की डंपिंग से भारी भूस्खलन हो रहा है।  पर्यावरणीय सुरक्षा की पूरी तरह से उपेक्षा करते हुए बनाई गई, इस योजना के लिए उत्तराखंड के लोग भारी कीमत चुका रहे हैं।

इस योजना में अब तक पच्चीस हज़ार से ज्यादा पेड़ों को काटा गया है। अनुचित तरीके से  सड़क काटने के कारण चार धाम मार्गों पर 500 से अधिक भूस्खलन हुए हैं।  मलबे को सीधा नदियों में डाला जा रहा है।  मलबे के कारण पहाड़ों को स्थिर करने वाली वनस्पति नष्ट हो रही है और नदियों में गाद बढ़ने से अनेक खतरे पैदा हो गए हैं।   कई  पहाड़ों को खतरनाक नब्बे डिग्री में काट दिया गया है और भारी बारिश के इनमें नियमित रूप से भूस्खलन हो रहा है।

चूंकि परियोजना लागू होने से पहले कोई पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय नहीं लिया गया था, इसलिए परियोजना उत्तराखंड के लोगों, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हो रही है और इस योजना के कारण अब तक  कई जानेआजीविका साधन, घरों और कृषि क्षेत्रों को खो दिया है। वैज्ञानिको का कहना है कि हिमालय के संवेदनशील पहाड़ यदि एक बार अस्थिर हो जाएं तो भूस्खलन रोकना लगभग असंभव हैं। उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत का मामला इसका एक जीवित उदहारण है जहाँ 282 करोड़ की भूस्खलन उपचार योजना के बावजूद आज भी भूस्खलन जारी है।   https://www.dailypioneer.com/state-editions/dehradun/all-weather-disasters-in-the-making.html   (3 सितंबर 2018)

यूके के शेफील्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए हाल के एक अध्ययन अनुसार ने भी पाया है कि हिमालय क्षेत्र भूस्खलन से बेहद प्रभावित है। ग्लोबल फैटल  लैंडस्लाइड डाटाबेस (जीएफएलडी) के मुताबिक निर्माण कार्यों, अवैध खनन और अनियमित तरीके से पहाड़ी-काटने से हिमालय में भूस्खलन बढ़ते जा रहे हैं। https://www.livemint.com/Politics/vJOn6G5QmwK4EMTevhBiUL/India-among-nations-most-affected-by-landslides-due-to-human.html  (24 अगस्त 2018)

धधक रहे हैं जंगल:-  राज्य के 60 प्रतिशत भूभाग पर जंगल और करोड़ों निवासी चारा, लकड़ी, पशुपालन के लिए जंगलों पर ही आश्रित है।  वनों से जल संचय होता है , माटी क्षरण  और भूकटान रुकता है।  फिर भी हर वर्ष प्रदेश के जंगल आग में नष्ट हो रहे हैं।  वर्ष 2018 में 25 मई तक आग से 2038 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हो था।  वर्ष 2016 में तो आग ने विकराल रूप धारण किया था और यह पांच हज़ार फुट की ऊचाई पर बांज के घने जंगलों तक पहुंच गई थी। उस साल आग से  4433 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था और 46.50 लाख की सम्पति को नुकसान हुआ था।  https://www.jagran.com/uttarakhand/dehradun-city-uttarakhand-forest-caught-fire-17992731.html  (25 मई 2018 )

बढ़ रही है बादल फटने की घटना :- साल डर साल, राज्य में बादल फटने की घटना भी बढ़ती जा रही है इस साल अब तक पुरे उत्तराखंड में बादल फटने की लगभग चौदह घटनाये हुई हैं जिसमे करोड़ों रूपये का नुकसान हुआ है।  https://sandrp.in/2018/07/21/uttrakhand-cloudburst-incidents-2018/ (21 जुलाई 2018)

जारी है विनाशक बांधों का बनना :- बड़े बांधो के खतरे के प्रति पूरा विश्व सचेत हो रहा है।  परन्तु तमाम नियमों को ताक पर रखकर इस समय उत्तराखंड में दो बड़ी बांध परियोजनाएं आगे बढ़ाई जा रही है, यमुना नदी पर लखवार और शारदा नदी पर पंचेश्वर। 

प्रस्तावित लखवार बांध की ऊचाई  204 मीटर है।  868. 8  हेक्टर की वन भूमि समेत, इस बांध में 1385.2 हेक्टेयर  भूमि जलमग्न हो जाएगी और लगभग 50 गांव डूब क्षेत्र में आएंगे।  यह बांध भूकंप जोन में बन रहा है , जहाँ  भूस्खलन आम बात है।  इस परियोजना को अभी पर्यावरणीय स्वीकृति भी नहीं मिली है और ना ही नदी, निवासी और प्रकृति पर होने वाले इसके प्रभावों के आकलन के लिए कोई वैज्ञानिक अध्ययन करवाया गया है। https://sandrp.in/2013/04/22/lakhwar-dam-project-why-the-project-should-not-go-ahead/  (22 अप्रैल 2013)   

उसी तरह, शारदा नदी, चम्पावत में पंचेश्वर बांध का प्रस्ताव है। 315 मीटर ऊंचा यह बांध, एशिया का सबसे ऊँचा बांध होगा। प्रस्तावित पंचेश्वर परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बांध की जरूरत नहीं है। बांध से  123 गांव  प्रभावित होंगे और वन भूमि को भी बहुत ज्यादा नुकसान होगा।  यह बांध भी भूकंप संवेदनशील क्षेत्र में है और समुचित पर्यावरण मूल्यांकनों और वैज्ञानिक अध्ययनों के आभाव में आगे बढ़ाया जा रहा है, जिस कारण इसका भारी विरोध किया जा रहा है।  https://sandrp.in/2018/01/11/who-exactly-needs-the-pancheshwar-dam/  (11 जनवरी 2018 )   

कभी भी सकता है विनाशकारी भूकंप:- उत्तराखंड में भूकंप के 134 फॉल्ट सक्रिय स्थिति में हैं। ये भूकंपीय फॉल्ट भविष्य में सात रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता के भूकंप लाने की क्षमता रखते हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के 'एक्टिव टेक्टोनिक्स ऑफ कुमाऊं एंड गढ़वाल हिमालय' नामक ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है। सबसे अधिक 29 फॉल्ट उत्तराखंड की राजधानी दून में पाए गए हैं। गंभीर यह कि कई फॉल्ट लाइन में बड़े निर्माण भी किए जा चुके हैं। गढ़वाल में कुल 57, जबकि कुमाऊं में 77 सक्रिय फॉल्ट पाए गए। अध्ययन में पता चला कि इन सभी फॉल्ट में कम से कम 10 हजार साल पहले सात आठ रिक्टर स्केल तक के भूकंप आए हैं। कुमाऊं मंडल में रामनगर से टनकरपुर के बीच कम दूरी पर ऐसे भूकंपीय फॉल्टों की संख्या सबसे अधिक पाई गई। https://www.jagran.com/uttarakhand/dehradun-city-devastating-earthquake-can-hit-uttarakhand-17864259.html (25 April 2018)


नासूर बन रही प्लास्टिक कचरे की समस्या :- एक नवीनतम सर्वेक्षण के मुताबिक, उत्तराखंड के 81 शहरों के कुल नगर पालिका ठोस कचरे में एक दिन में प्लास्टिक कचरे की वर्तमान एकाग्रता के चलते, जो वर्तमान में 17% है, प्लास्टिक की बर्बादी का औसत टन 2041 में दोगुना हो जाएगा। 2016-17 में उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी) द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 272.22 टन प्रति दिन प्लास्टिक कुल कचरे से रिपोर्ट किया गया है जो 2014 में 457.63 टन बढ़ने जा रहा है। यह पहाड़ी राज्य के लिए गंभीर प्रभाव डालने जा रहा है।     https://www.hindustantimes.com/dehradun/plastic-waste-will-double-in-23-years-in-uttarakhand-pollution-board-report/story-x5TsYIfTrL9i3aZX8OCXFN.html (4 June 2018)

वास्तव में उत्तराखंड में अजैविक कचरे और बायो मेडिकल कचरे  निपटान की समुचित निस्तारण सुविधा उपलब्ध नहीं है।  जल स्रोतों, नदियों और जंगलों में प्लास्टिक कचरा जमा होता जा रहा है और पर्यावरण तथा वन्यजीवों को नुकसान पहुंचा रहा है।  उसी प्रकार उत्तराखंड में सीवेज उपचार प्रबंध की सुविधा का अभाव है।  हर छोटे कस्बे बड़े शहर का मल मूत्र नदियों में डाला जा रहा है।  ग्रामीण क्षेत्रों में बन रहे गड्ढा शौचालय भी धीरे धीरे भूजल और पेयजल स्रोतों  को प्रदूषित कर रहे हैं।  जिनसे मच्छर और जनजनित रोगों की घटनाएं बढ़ती जा रही है।

साथियों कुल मिलाकर हिमालय हमें बार बार, लगातार चेता रहा है, पर क्या हम इस पर ध्यान दे रहे हैं। आईए हिमालय दिवस 2018 के अवसर पर हिमालय और उत्तराखंड पर आसन्न संकटों की गंभीरता को समझे और रोकथाम के ईमानदार प्रयास करे। 

जय हिमालय
Bhim